हमारा इतिहास

ताम्रपत्र

स्वरुप श्री राजश्री महाराजा घिराज महाराजा श्री अजीतसिंह है कि जालोर तकिया जो भोलाई नाडी के पास स्थित है साॅई पीर निजामशाहजी पीर मोटनशाहजी के चेले को मारवाड रियासत के तमाम मुसला (मोयला) भेट कीये (जागीर) मैं दिये मुसला का न्याय इंसाफ इस तकिये पर होगा इनको दण्ड (सजा) वगैरह यह देगे व इनका जुर्माना वगैरह यह वसुल करेगे तकिये के गुजारे के लिए जालोर कस्बे की जमीन ५॰॰ बीघा जमीन भेट की गई जिसका रुकबा इस प्रकार है भोलाई नाडी की पूर्व की पाल से १६॰ कदम (पाबड़ा) व उतर दिशा मे भोलाई नाडी की पाल से जालोर कस्बे से केशवना ग्राम को मार्ग जाता है उस तक पश्चिम दिशा मे पहाड डाबला तक दक्षिण मे भोलाई नाडी की पाल से २॰ कदम (पाबड़ा) तक जालौर कस्बे का एक कुॅआ (खारचीया) बेरा जिसका रकबा पके ६॰ बीघा है मारवाड के गाँवों से मुसला जाति के प्रतिहार वसूली का अधिकार संकल्प कर दिया है यह पैदावार राजकिय कोष मे जमा नही होगी इस बात का ताम्र-पत्र भेट कीया है यह पैदावार आपके चेले दर चेले खाया करेगे व महाराज का दुआये देगे यह तकीया हमारा गुरुद्धारा है संवत १७६५ रा कार्तिक सुद पूर्णिमा मारवाड जोधपुर